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जीवाजीवविभक्ति
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(१३०) इस तरह द्वीन्द्रिय जीवों के अनेक भेद होते हैं और वे
सब लोक के अमुक अमुक भागों में रहते हैं। (१३१) प्रवाह की अपेक्षा से ये सब अनादि एवं अनन्त हैं किंत
आयुष्यस्थिति की अपेक्षा से वे आदि-अन्त सहित है। (१३२) द्वीन्द्रिय जीवों की जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त की और
उत्कृष्ट आयु १२ वर्षों तक की कही है। (१३३) द्वीन्द्रिय जीवों को काय स्थिति ( उसी काय को न छोड़ें
तब तक की) कम में कम अन्तर्मुहूर्त और अधिक से
अधिक असंख्यात काल तक की है। 1938) दीन्द्रिय जीव अपनी काय को छोड़ कर फिर द्वीन्द्रिय
शरीर धारण करे उनके बीच का जघन्य अन्तराल अन्त
महत का और उत्कृष्ट अनंतकाल तक का है। (१३५) द्वोन्द्रिय जीव स्पर्श, रस, गंध, वर्ण और संस्थान की
अपेक्षा से हजारों प्रकार के होते हैं। (१३६) त्रीन्द्रिय जीव (१) पर्याप्त, और (२) अपर्याप्त-ये दो
तरह के होते हैं। अब मैं उनके उपभेद बताता हूँ, उन्हें
सुनो। (१३७) (१) कुंथवा, (२) कीड़ी, (३) चांचड़, (४) उक
लीया, (५) तृणाहारी, (६) काष्ठाहारी, (७) मालुगा
और (८) पत्ताहारी। ..(१३८) (९) कपास के बीज में उत्पन्न जीव, (१०) तिन्दुक,
(११) मिंजका, (१२) सदावरी, (१३) गुल्मी, (१४) इन्द्रगा और (१५) मामणमुंडा आदि अनेक प्रकार के हैं।