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________________ जीवाजीवविभक्ति । (१०१) प्रवाह की अपेक्षा से ये सब अनादि एवं अनन्त हैं किंतु एक एक जीव की आयुस्थिति की अपेक्षा से वे सादि एवं सान्त हैं। (१०२) वनस्पति काय के जीवों को जघन्य आयुस्थिति अन्तर्मु हूर्त की और उत्कृष्ट प्रायुस्थिति दस हजार वर्षों की है। (१०३) वनस्पति कायिक जीवों की कायस्थिति, उसी २ योनि में जन्म धारण करता रहे तो कम से कम अन्तर्मुहूर्त की ओर अधिक से अधिक अनंत काल तक की है। टिप्पणी-लील फूल, निगोद इत्यादि अनन्त काय के जीव की अपेक्षा से अनन्त काल कहा है। (१०४) वनस्पति कायिक जीव के, अपनी काय को छोड़कर दुबारा उसी काय में जन्म धारण करने के अन्तराल की जघन्य स्थिति एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति अनन्त काल तक की है। (१०५) वनस्पति कायिक जीवों के स्पर्श, रस, गंध, वर्ण एवं संस्थान की अपेक्षा से हजारों भेद हैं। (१०६) इस तरह संक्षेप में तीन प्रकार के जीव कहे हैं। अब तीन प्रकार के त्रसों के विषय में कहता हूँ। (१०७) अग्निकाय, वायुकाय और द्वीन्द्रियादिक चलते फिरते बड़े जीव-ये तीन भेद त्रस जीवों के हैं। अब इनमें से प्रत्येक के उपभेद गिनाता हूँ उन्हें ध्यानपूर्वक सुनो। टिप्पणी-यहां पर अग्नि एवं वायु कायिक जीवों को एक खास अपेक्षा से अस कहा है, यद्यपि ये दोनों वस्तुतः स्थावर ही हैं। .
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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