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उत्तराध्ययन सूत्र
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(१०८) अग्निकाय के जीव (१) सूक्ष्म, और (२) स्थूल ये,
दो प्रकार के होते हैं। और उन दोनों के पर्याप्त एवं
अपर्याप्त ये दो दो उपभेद हैं। टिप्पणी-पर्याप्त जीव उन्हें कहते है कि जिन्हें, जिस योनि में जितनी
पर्याय मिलनी चाहिये उतनी सब मिली हो और जो नीव उन्हें पूर्णरूप से प्राप्त किये विना ही मर जाते हैं उन्हें अपर्याप्ति जीक. कहते हैं। पर्याय ६ प्रकार की है-आहार, शारीर, इन्द्रिय, श्वासो
च्छ्वास, भाषा और मन । (१०९) स्थूल पर्याप्त अग्निकायिक जीव अनेक प्रकार के होते हैं,
जैसे-(?) अङ्गारा, (२) राखमिश्र अग्नि, (३) तप्त धातु की अग्नि, (४) अग्नि ज्वाला (५)-भड़का,
(विछिन्न शिखा)(११०) (६) उल्कापात की अग्नि, (७) विजली की अग्नि
श्रादि अनेक भेद हैं। सूक्ष्म पर्याप्त अग्निकाय के जीव
केवल एक ही प्रकार के हैं। ' (१११) सूक्ष्म अग्निकायिक जीव सब लोक में व्याप्त हो रहे हैं किंतु
स्थूल तो लोक के केवल अमुक भाग में ही व्याप्त हैं।
अव उनका चार प्रकार का कालविभाग बताता हूँ। (११२) प्रवाह की अपेक्षा से तो सब जीव अनादि एवं अनन्त
हैं किन्तु भिन्न २ श्रायु की स्थितियों की अपेक्षा से वे
अादिन्यन्त सहित है। (११३) अग्निकाय के जीवों की जघन्य आयुष्य अन्तर्मुहर्त की
और रत्कृष्ट असंख्य काल तक की है।