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जीवाजीवविभक्ति
जीवाजीव पदार्थों का विभाग
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उद्योतन, जड़ ( कम ) के जड़ ( कर्मों) के संसर्ग से जन्ममरण के चक्र में घूमता फिरता है । इसी का नाम संसार है
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ऐसे संसार की आदि का पता कैसे चले ? जब से चेतन है तभी से जड़ है - इस तरह ये दोनों तत्त्व जगत के अणु अणु में भरे पड़े है । हमें उसकी श्रादि (प्रारंभ ) की चिन्ता नहीं है क्योंकि उसकी आदि किस काल में हुई - यह जानने से हमें कुछ भी लाभ नहीं है और उसे न जानने में अपनी कुछ भी हानि नहीं है । क्योंकि जैन दर्शन मानता है कि इस संसार की आदि नहीं है और समस्त प्रवाह की दृष्टि से अनन्त काल तक संसार तो चालू ही रहेगा । फिर भी मुक्त जीवों की दृष्टि से मुक्ति (संसार का अन्त ) थी और रहेगी ।
चेतन और जड़ का सम्बन्ध चाहे जितना भी निबिड ( घट्ट ) क्यों न हो, फिर भी यह संयोगिक संबंध है । समवाय संबंध का अन्त नहीं होता, परन्तु संयोग संबंध का अन्त श्राज, कल और नहीं तो कुछ काल बाद हो जाना सम्भव है ।
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