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उत्तराध्ययन सूत्र
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भगवान बोले(१) जिस मार्ग का अनुसरण करके भिक्षु दुःख का अंत कर
सकता है उस तीर्थङ्कर निरूपित मार्ग का तुम को उपदेश
करता हूँ । उसको तुम एकाग्र चित्त से सुनो। (२) जिस साधुने गृहस्थवास छोड़कर संयम-मार्ग अंगीकार किया
है उसको उन आसक्तियों के स्वरूप को बराबर समझ
लेना चाहिये जिनमें सामान्य मनुष्य बंधे हुए हैं। टिप्पणी-'समझ लेने से यह आशय है कि उन्हें समझ कर छोड़ देवे । (३) उसी प्रकार हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्मचर्य, अप्राप्य वस्तुओं
की इच्छा तथा प्राप्त पदार्थों का परिग्रह (ममत्व भाव) इन
५ स्थानों का भी संयमी छोड़ देवे। (४) चित्रों से सुशोभित, पुष्प अथवा अगरचंदन आदि सुगन्धितः
पदार्थों से सुवासित सुंदर श्वेतवस्त्रों के चदोवों द्वारा सुसजित, तथा सुन्दर किवाड़ वाले मनोहर घर की भिक्षु मन
से भी इच्छा न करे। टिप्पणी-ऐसे स्थानों में न रहने के लिये जो कहा गया है उसका
मतलब यह है कि वाहर का सौन्दर्य भी कई बार देखने से आत्मा में वीलरूप में विद्यमान रागादिक विकारों को उत्तेजित करने में
निमित्त रूप हो जाता है। (५) ( उपरोक्त प्रकार के सुसज्जित) उपाश्रय में भिक्षु को अपना
इन्द्रिय संयम रखना कठिन होता है क्योंकि वह स्थान काम और राग को बढ़ानेवाला होता है।