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अणगाराध्ययन
साधु का चारित्र
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छूट जाना
कोई आसान
संसार के बाघ बंधनों से बात नहीं है । संसार के क्षणभंगुर पदार्थों में बहुत से बिचारे भोगविलासी जीव रच पच रहे हैं, भटकते फिर रहे है और स्वच्छन्दी जीवन व्यतीत कर इस लोक तथा परलोकमें परम दुःख को देनेवाले कर्मों का सञ्चय कर रहे है ।
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यहां तो, किसी क्षीणकर्मी जीव को ही सद्भाव, वैराग्य या त्याग धारण करने की उत्कट अभिलाषा पैदा होती है। यहां तो धन इकट्ठा करने के लिये ही दौड़ा दौड़ी हो रही है, त्यागभाव किसी विरले को ही होता है ।
ऐसा त्यागी जीवन यद्यपि दुर्लभ है फिर भी शायद मिल भी जाय तो भी घरवार, सगेसम्बन्धी आदि को छोड़ देने से ही जीवनविकास की इतिश्री नहीं हो जाती । जितना ऊंचा आदर्श होता है, जवाबदारी भी उतनी ही भारी होती है ।
त्यागी का जीवन, त्यागी की सावधानी, त्यागी की मनोदशा आदि कितने कठोर, उदार और पवित्र होने चाहिये उसका यहां वर्णन किया है ।