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उत्तराध्ययन सूत्र
(६१) इसलिये इन सभी लेश्याओं के परिणामों को जानकर भिक्षु अप्रशस्त लेश्याओं को छोड़कर प्रशस्त लेश्याओं में अधिष्ठान करे |
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टिप्पणी- शुभ को सब कोई चाहता है, अशुभ को कोई नहीं चाहता । किन्तु शुभ की प्राप्ति केवल विचार करने मात्र से नहीं हो सकती । उसकी प्राप्ति के लिये तो निरन्तर शुभ प्रयत्न करना पड़ता है।
अप्रशस्त लेश्याओं की उत्पत्ति होना स्वाभाविक है, उसे प्राप्त करने के लिये प्रयत्न महीं करना पड़ता । ईर्ष्या, क्रोध, द्रोह, क्रूरता, असंयम, प्रमत्तता, वासना, माया आदि निमित्त मिलते ही जीवात्मा इच्छा अथवा अनिच्छा से सहसा कुछ का कुछ कर चैता है किन्तु कोमलता, विश्वप्रेम, संयम, त्याग, अर्पणता, अभयता आदि उच्च सद्गुणों की आराधना करना भी कठिन है । इसी में जीवात्मा की कसौटी होती है और वहीं उपयोग की जरूरत है । ऐसी कसौटी पर चढ़नेवाला साधक ही शुभ, सुन्दर तथा प्रशस्त लेश्याओं को प्राप्त करता है ।
ऐसा मैं कहता हूँ
इस तरह 'लेश्या' संबंधी चौंतीसवाँ अध्ययन समाप्त हुआ ।