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उत्तराध्ययन सूत्र
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(१७) तेजोलेश्या, पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्या इन तीनों प्रशस्त लेश्याओं की गंध केवड़ा आदि सुगंधित पुष्पों अथवा घिस जाते हुए चंदनादि की सुगंध से भी अनंत गुनी विक प्रशस्त होती है ।
(१८) कृष्ण, नील, और कापोती इन तीनों लेश्याओं का स्पर्श यारो, गाय बैल की जीभ और साग वृक्ष के पत्र की अपेक्षा अनंत गुना अधिक कर्कश होता है ।
(१९) तेजो, पद्म और शुकु इन तीनों लेश्याओं का स्पर्श मक्खन, सरसों के फूल, बूर नामक वनस्पति के स्पर्श की अपेक्षा अनंत गुना अधिक कोमल होता है ।
टिप्पणी- तीन अर्थात् जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट |
(२०) उन छहों लेश्याओं के परिणाम अनुक्रम से तीन, नौ, सत्ताईस, इक्यासी और दोसौ तेतालीस प्रकार के होते हैं । फिर जवन्य, मध्यम और उत्कृष्ट के क्रम से ये ही तीन तीन भेद और बढ़ाते जाना चाहिये ।
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लेश्याओं के लक्षण
(२१-२२) पाचों आस्रवों ( मिथ्यात्व, श्रवत, प्रमाद, कपाय और अशुभ योग ) का निरन्तर सेवन करनेवाला, मन वचन और काय का असंयमी छ काय की हिंसा में आसक्त, आरम्भ में मग्न; पाप के कार्यों में प्रबल पराक्रमी और क्षुद्र श्रात्मावाला क्रूर, श्रजितेन्द्रिय, सर्व का अहित करने - वाला एवं कुटिल भावनाशील इन सब भोगों में लगे हुए जीव को कृष्ण लेश्याधारी समझना चाहिये ।