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________________ लेश्या ४०१ (८) पद्म लेश्या का वर्ण हल्दी के टुकड़े जैसा, सन जैसा, और असन के फल जैसा पीला माना है । (९) शुक्ल लेश्या का वर्ण शंख, अंकरल, मचकुंद के फूल, दूध की धार अथवा चांदी के हार के समान उज्ज्वल माना है । (१०) कृष्ण लेश्या का रस, कड़वी तुंबड़ी, कडुए नीम, अथवा कड़वी रोहिणी के रस से भी अनंत गुना अधिक कडुआ समझना चाहिये । (११) नील लेश्या का रस सोंठ, मिर्च, पीपर, अथवा हस्ति पिप्पली के रस की भी अपेक्षा अनंत गुना तीखा समझना चाहिये । (१२) कापोती लेश्या का रस कच्चे आम, कच्चे कोठा अथवा तूंवर के फल के रस से भी अनंत गुना अधिक खट्टा समझना' चाहिये | 7 (१३) तेजोलेश्या का रस पके आम और पके कोठा के रस से भी अनन्त गुना अधिक खट्टामीठा समझना चाहिये । (१४) पद्म लेश्या का रस उत्तर वारूणी ( एक प्रकार की अति खट्टी मीठी शराव ), भिन्न २ प्रकार के मधु, मेरक आसव आदि के रस की अपेक्षा अनंत गुना मीठा समझना, चाहिये । - (१५) शुक्ल लेश्या का रस खजूर, द्राक्ष, दूध, शक्कर, गुड़ आदि के रस से भी अनंत गुना अधिक मीठा समझना चाहिये । (१६) कृष्ण, नील, कापोती इन तीनों अशुभ लेश्याओं की गंध, मृत गाय, मृत कुत्ते अथवा मृत सर्प की दुर्गंध से अनंत गुनी अधिक होती है । २६
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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