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| लेश्या
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. (२३-२४) ईर्ष्यालु, कदाग्रही ( असहिष्णु ) तप ग्रहण न करनेवाला, अज्ञानी, मायावी, निर्लज्ज, लंपट, द्वेषी, रसलोलुपी, शठ, प्रमादी, स्वार्थी, आरंभी, क्षुद्र तथा साहसी इत्यादि प्रकार के जीव को नील लेश्याधारी समझना चाहिये ।
(२५-२६) वाणी और आचार में ( अप्रामाणिक ), मायावी, अभिमानी, अपने दोष को छुपानेवाला, परिग्रही, अनार्य, मिथ्यादृष्टि, चोर और मर्मभेदी वचन बोलने वाला इन सब लक्षणों से युक्त मनुष्य को कापोती लेश्या का धारक जीव समझना चाहिये ।
(२७-२८) नम्र, अचपल, सरल, अकुतूहली, विनीत, दांत, तपस्वी, योगी, धर्म में दृढ़, धर्मप्रेमी, पापभीरू, परहितैषी आदि
गुणों से युक्त जीव को तेजो लेश्यावंत समझना चाहिये । (२९-३०) जिस मनुष्य को क्रोध, मान, माया, और लोभ अल्पमात्रा में हों, जिसका चित्त संतोष के कारण शांत रहता हो, जो दमितेन्द्रिय हो; योगी, तपस्वी, अल्पभाषी, उपशम रस में मग्न, जितेन्द्रिय --- इन सब गुणों से युक्त जीव को पद्म लेश्याधारी समझना चाहिये ।
(३१) आर्त तथा रौद्र इन दोनो ध्यानों को छोड़कर जो धर्म एवं शुकु ध्यानो का चितवन करता है तथा राग द्वेषरहित, शांतचित्त, द्रुमितेन्द्रिय तथा पांच समितियो एवं तीन गुप्तियों से गुप्त -
(३२) परागी अथवा वीतरागी, उपशांत, जितेन्द्रिय आदि गुणो में लवलीन उस जीव को शुक्ल लेश्यावान समझना चाहिये ।
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