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लेश्या
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फिर भी कार्यविशेष से उस वस्तु के अस्तित्व का हम कल्पना द्वारा अनुमान जरूर कर सकते हैं। मनुष्य की मुखाकृति, उसकी भयंकरता, सौम्यता, साहसिकता, गात्र का कंपन, उष्णता आदि सभी बातें आत्मा के विशिष्ट भावों को व्यक्त करती हैं। आधुनिक वैज्ञानिकशोधों से यह सिद्ध हो चुका है कि अत्यंत क्रोध के समय शरीर के रक्त बिन्दु विषमय हो जाते है और उस जहर से मनुष्य का वध भी हो सकता है । अनेक घटनाएं ऐसी हो चुकी है । इसलिये इस विषय में विशेष लिखनेकी आवश्यकता नहीं है । जो वस्तु प्रत्यक्ष है वह स्वयसेव सिद्ध है, उसका अस्तित्व सिद्ध करने के लिये अन्य प्रमाणों की जरूरत नहीं है ।
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श्रात्मा के भाव असंख्य हो सकते है इस दृष्टि से लेश्याएं भी असंख्य ही हैं किन्तु व्यवहार के लिये उनको ६ मुख्य भागों में विभक्त कर लिया गया है । उनमें से प्रथम तीन लेश्याएं प्रशस्त हैं और बाकी की तीन शुभ हैं । अप्रशस्त का त्याग करना और प्रशस्त की आराधना करना प्रत्येक के लिये मुमुक्षु 'परमावश्यक है ।
भगवान बोले:
(१) अब मैं यथाक्रम लेश्या के अध्ययन का वर्णन करता हूँ । इन ६ प्रकार की कर्म लेश्याओं के अनुभावों का वर्णन करते हुए मुझको तुम ध्यानपूर्वक सुनो
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टिप्पणी -- कर्मलेश्या शब्द का उपयोग एक विशिष्ट अपेक्षा से किया है । कर्म और लेश्या का अविनाभावी संबंध है । इसी विवक्षा से इसका इस रूप में कथन किया गया है। अनुभाव अर्थात् कर्मो का तीव्रमंद रस देने का गुण ।