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________________ उत्तराध्ययन सूत्र टिप्पणी-- प्रदेश अर्थात् उन उन कर्मों के पुद्गल परमाणुओं की संख्या । कर्म परमाणु जढ़ हैं । ३९४ (१७) ग्राठों कर्मों के सब मिलाकर अनंत प्रदेश हैं और उनकी संख्या का प्रमाण संसार के भव्य जीवों को संख्या से अनंतगुना है और सिद्ध भगवानों की संख्या का श्रनन्तव भाग है। t टिप्पणी- अभव्य जीव उन्हें कहते हैं जिनमें मुक्ति प्राप्ति करने की योग्यता न हो । (१८) समस्त जीवों के कर्म संपूर्ण लोक की अपेक्षा से छह दिशाओं में, सब ग्रात्मप्रदेशों के साथ सब तरह बंधते रहते हैं । टिप्पणी-- जिस तरह द्रव्य की अपेक्षा से आठों कर्म संख्या में वैसे दो क्षेत्र की अपेक्षा से ६ दिशाओं में बंटे हुए हैं । J : (१९-२० ) उन आठ कर्मों में से ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय और अंतराय कर्मों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट स्थिति तीस क्रोडाक्रोडी सागर की है । } टिप्पणी- वेदनीय कर्म के दो भेदों में से सातावेदनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति पन्द्रह क्रोडाक्रोडी सागर की है । सागर, शब्द जैन धर्म में एक बहुत लम्बे काल प्रमाण का सूचक पारिभाषिक शब्द है । , (२१) मोहनीय कर्म की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट स्थिति सत्तर क्रोडाकोडी सागर की है । ' (२२) आयुष्यकर्म की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट स्थिति देवीस सागर तक की है।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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