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________________ कर्म प्रकृति ३९३ (११) कपाय से उत्पन्न कर्मों के १६ भेद हैं और नो कषाय के सात अथवा नौ भेद हैं । टिप्पणी - ( १ ) क्रोध, (२) मान, ( ३ ) माया, ( ४ ) लोभ ये चार कषाय हैं । इनमें से प्रत्येक के अनन्तानुबंधी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान, और संज्वलन ये चार चार उपभेद हैं इसलिये ये सब मिलकर १६ भेद हुए | हास्य, रति, भरति, भय, शोक, जुगुप्सा, वेद ये; अथवा वेद के पुरुषवेद, स्त्रीवेद, तथा नपुंसक भेद करने से ये सब ९ भेद नोककपाय के हुए । ܙ (१२) नरक, तिर्यच, मनुष्य और देव — ये चार भेद आयुष्य कर्म के हैं । (१३) नाम कर्म के दो प्रकार हैं - ( १ ) शुभ, तथा ( २ ) अशुभ इन दोनों के भी बहुत से उपभेद हैं । (१४) गोत्र कर्म के दो भेद हैं: - ( १ ) उच्च, तथा ( २ ) नीच आठ प्रकार के मद करने से नीच गोत्र का तथा मद नहीं करने से उच्च गोत्र का बंध होता है । इस पर से इन दोनों के आठ आठ भेद कहे हैं । (१५) अन्तराय कर्म के पांच भेद हैं: - ( १ ) दानान्तराय, ( २ ) लाभान्तराय, ( ३ ) भोगान्तराय, ( ४ ) उपभोगान्तराय, तथा ( ५ ) वीर्यान्तराय । टिप्पणी - अपने पास वस्तु होने पर भी उसका उपभोग न कर सकना अथवा भोग्य वस्तु की प्राप्ति हो न होना-उसे अन्तराय कर्म कहते हैं | (१६) इस प्रकार आठ कर्म और उनकी उत्तर प्रकृतियों का वर्णन किया। अब उनके प्रदेश, क्षेत्र, काल तथा भाव का वर्णन करता हूँ उन्हें ध्यानपूर्वक सुनो । J
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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