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उत्तराध्ययन सूत्र
(५)(१) निद्रा, (२) निद्रानिद्रा, (गाढ़ निद्रा), (३)
प्रचला ( उठते बैठते ही ऊंबना), (४) प्रचलो प्रचला (चलते हुए भी ऊंघ जाना), (५) थिणद्धि निद्रा ( सोते सोते कोई जवरदस्त काम कर डालना किन्तु सो
कर उठने पर उसकी याद भी न रहना)। (६) (६) चक्षु दर्शनावरणीय, (७) अचक्षुदर्शनावरणीय,
(८) अवधिदर्शनावरणीय, (९) केवलदर्शनावरणीय,
ये दर्शनावरणीय कर्म के ९ भेद हैं। (७) (१) सातावेदनीय (जिसे भोगते हुए सुख उत्पन्न हो)
तथा असातावेदनीय (जिसके कारण दुख हो)। ये दो भेद वेदनीयकर्म के हैं इन दोनों के भी दूसरे अनेक
भेद हैं। टिप्पणी-कर्म प्रकृति का विस्तार बहुत ही विशाल है। अधिक समझने
के लिये कर्म प्रकृति, कर्म ग्रन्थ, इत्यादि ग्रन्थ पढ़ें। (८) दर्शनमोहनीय तथा चारित्रमोहनीय ये दो भेद मोहनीय
कमें के हैं। दर्शनमोहनीय के तीन और चारित्रमोहनीय
के दो और उपभेद है। (९) दर्शनमोहनीय के (१) सम्यक्त्वमोहनीय, (२) मिथ्यात्व
मोहनीय और ( ३) सम्यमिथ्यात्वमोहनीय ये तीन
भेद हैं। (१०) चारित्रमोहनीय के (१) कपायमोहनीय, तथा (२)
नोकपायमोहनीय ये दो भेद हैं। टिप्पणी-क्रोधादिकपायजन्य कर्म को कृपायमोहनीय कर्म कहते हैं।
भौर नोपायजन्य क्रम को नोकपायमोहनीय कर्म कहते हैं।
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