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कर्मप्रकृति
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यद्यपि कर्म एक ही है किन्तु भिन्न २ परिणामों की दृष्टि से उसके भेद है। उनमें भी सब से अधिक प्रवल सत्ता, प्रबल सामर्थ्य, प्रवल कालस्थिति और प्रवल विपाक मोहनीयकर्म के माने जाते है। मोहनीय अर्थात चैतन्य की भ्रांति से उत्पन्न हुआ कर्म। आठ कर्मों मे यह सब का राजा है। इस राजा को जीत लेने के बाद दूसरे कर्म-सामन्त आसानी से जीत लिये जाते हैं।
इन सब कर्मों के पुद्गल परिणाम, उनकी कालस्थिति, . उनके कारण चैतन्य में होनेवाले परिणाम, काम, क्रोध, लोभ, मोह श्रादि शत्रुओं के प्रचंड प्रकोप आदि अधिकार इस अध्ययन में संक्षेप में किन्तु स्पष्ट रीति से वर्णन किये गये हैं। इस प्रकार के चिन्तन से जीवन पर होनेवाले कर्मों के असर से बहुतधेशमें मुक्त हुआ जा सकता है।
भगवान बोले(१) जिनसे बन्धा हुआ यह जीव संसार में परिभ्रमण किया ___ करता है उन आठ कमों का क्रमपूर्वक वर्णन करता हूँ,
उसे ध्यानपूर्वक सुनो। (२)( १ ) ज्ञानावरणीय, (२) दर्शनावरणीय, (३) वेद
नीय, (४) मोहनीय, तथा (५) श्रायुकर्म । (३) और ( ६ ) नामकर्म, (७) गोत्रकर्म, तथा (८) अन्त
रायकर्म इस तरह ये आठ कर्म संक्षेप में कहे है। : । (४)(१) मति ज्ञानावरणीय, (२) श्रुतज्ञानावरणीय, (३)
अवधिज्ञानावरणीय, (४) मनःपर्यायज्ञानावरणीय, और (५) केवलज्ञानावरणीय ये पांच ज्ञानावरणीय के भेद हैं।