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________________ 6 ३१ - चरणविधि संसार यह पाठ सीखने की शाला है -- प्रत्येक वस्तु में कुछ ग्रहण करने योग्य, कुछ त्यागने योग्य और कुछ उपेक्षणीय गुण हुआ करते है उनमें से यहां एक से लेकर तेतीस संख्या तक की वस्तुओं का वर्णन किया है- उपयोग यही धर्म है । ३२ -- प्रमादस्थान ३६७ प्रमादस्थानों का चिकित्सापूर्ण वर्णन-व्याप्त दुःख से छूटने एकतम मार्ग - तृष्णा, मोह, और क्रोध का जन्म कहां से ? राग तथा हेप का मूल क्या है ? मन तथा इन्द्रियों के असंयम के दुष्परिणाम - मुमुक्षु की कार्यदिशा । ३३ - कर्मप्रकृति ३६० जन्म-मरण के दुःखों का मूल कारण क्या है ? आठ कर्मों के नाम, भेद, उपभेद तथा उनकी जुड़ी २ स्थिति एवं संक्षिप्त वर्णन | परिणाम का ३४ - लेश्या ३६७ सूक्ष्म शरीर के भाव अथवा शुभाशुभ कर्मों के परिणाम ट लेश्याओं के नाम, रंग, रस, बन्ध, स्पर्श, परिणाम, लक्षण, स्थान, स्थिति, गति, जघन्य एवं उत्कृष्ट स्थिति आदि का विस्तृत वर्णन - किन २ दोपों एवं गुणों से असुन्दर एवं सुन्दर भाव पैदा होते हैंस्थूल क्रिया से सूक्ष्म मन का सम्बन्ध-कलुषित अथवा अप्रसन्न मन का आत्मा पर क्या असर पड़ता है-मृत्यु से पहिले जीवन कार्य के फल का विचार | -up --- -श्रणगाराध्ययन ૪૦૨ गृह संसार का मोह --संयमी की जवाबदारी - त्याग की सावधानता - प्रलोभन तथा दोप के निमित्त मिलने पर समभाव कौन रख सकता है ? निरासक्ति की वास्तविकता - शरीर ममत्वका त्याग !
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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