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________________ श्रमादस्थान ३७१ (१३) जैसे बिल्लियों के स्थान के पास चूहों का रहना प्रशस्त ( उचित ) नहीं है वैसे ही स्त्रियों के स्थान के पास ब्रह्मचारी पुरुष का निवास भी योग्य नहीं है । टिप्पणी -- ब्रह्मचारी के लिये जिस तरह स्वादेन्द्रिय का संयम तथा स्त्रीसंगत्याग आवश्यक है उसी प्रकार ब्रह्मचारिणो स्त्रियों को भी इन दोनों बातों का ध्यान रखना चाहिये । (१४) श्रमण तथा तपस्वीसाधक स्त्रियों के रूप, लावण्य, विलास हास्य, मंजुलवचन, अंगोपांग की गठन, कटाक्ष आदि देखकर उन्हें अपने चित्त में न लावे और न इच्छापूर्वक उन्हें देखने का प्रयत्न ही करे । (१५) उत्तम प्रकार के ब्रह्मचर्यव्रत में लगे हुए और ध्यान के अनुरागी साधक स्त्रियों का दर्शन, उनकी वांच्छा, उनका चिन्तवन अथवा उसका गुणकीर्तन न करें इसी में उनका हित है । ((१६) मन, वचन और काय इन तीनो का संयम रखनेवाले समर्थ योगीश्वर जिनको डिगाने में दिव्य कान्तिधारी देवांगनाएं भी सफल नहीं हो सकतीं, ऐसे मुनियों को भी स्त्री आदि से रहित एकान्तवास ही परम हितकारी है ऐसा जानकर मुमुक्षु को एकान्तवास ही सेवन करना चाहिये । (१७) मोक्ष की आकांक्षावाले, संसार से डरे हुए और धर्म में स्थिर ऐसे समर्थ पुरुष को भी अज्ञानी पुरुष का मनहरण करनेवाली स्त्रियो का त्याग करना जितना कठिन है उतना कठिन इस समस्त लोक में और कुछ भी नहीं है ।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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