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प्रमादस्थान
(५) यदि अपने से अधिक गुणी अथवा समगुणी सहचारी
न मिले तो कामभोगों से निरासक्त होकर और पापों को दूर करके एकाकी रहे और रागद्वेषरहित होकर शान्ति.
पूर्वक विचरे। टिप्पणी-साधक को सहचारी की हमेशा आवश्यकता रहती है किन्तु
यदि उपयुक्त सहचारी न मिले, तो एकाकी रहे किन्तु ' दुर्गुणी का संग तो साधु कभी न करे। इस सूत्र में एक चर्या का विधान नहीं किया गया है किन्तु गुणी के सहवास में ही रहना-इसपर भार
देने के लिये ही 'एक' शब्द का प्रयोग किया गया है (६) जैसे अण्डे में से पक्षी और पक्षी में से अंडा इस प्रकार
परस्पर कार्यकारण भाव है वैसे ही मोह से तृष्णा और तृष्णा से मोह इस तरह इन दोनो का पारस्परिक जन्य
जनक भाव महापुरुषों ने बताया है। (७) तथा राग एवं द्वेष ये दोनों ही कमों के बीजरूप हैं।
कर्म मोह से उत्पन्न होते हैं और ये ही कम जन्म-मरण के मूल कारण हैं और जन्म-मरण ही सब दुःखों के मूल
कारण हैं-ऐसा ज्ञानी पुरुषों ने कहा है। टिप्पणी-दुःखका कारण जन्म-मरण, जन्म-मरण का कारण कम और कर्म
का मूलकारण मोह और मोह का मूलकारण रागद्वेष है। इस तरह से रागद्वेष ही ससस्त संसार का मूलकारण है।
:ख उसीका नष्ट हुआ है जिसको मोह ही नहीं होता। इसी तरह मोह उसका नष्ट हुआ समझो जिसके हृदय में से तृष्णा रूपी दावानल बुझ गई और तृष्णा भी उसीकी
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