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उत्तराध्ययन सूत्र
गुरुजन तथा महापुरुषों की सेवा, सत्संग, तथा सद्वाचन से जिज्ञाला जागृत होती है। सच्ची जिज्ञासा के जागृत होने पर सत्य, ब्रह्मचर्य, त्याग, संयम, आदि जैसे उत्तम गुणों की तरफ रुचि बढ़ती हैं और ऐसे आचरण से पूर्व की मलि नता धुल कर शुद्ध भावनाएं जागृत होती है। ऐसी भावनाएं चिन्तन, मनन, तथा निदिध्यास में उपयोगी तथा श्रात्मविकास में खूब ही सहायक हो सकती है ।''
भगवान बोले
( १ ) अनादि काल से मूलसहित रहे हुए सर्व दुःखों की मुक्ति का एकान्त हितकारी तथा कल्याणकारी उपाय कहता हूँ उसे तुम एकाग्र चित्त से सुनो।
(२) संपूर्ण ज्ञान के प्रकाश से, अज्ञान तथा मोह के सम्पूर्ण त्याग से, राग एवं द्वेष के क्षय से, एकान्तसुखकारी मोक्षपद की प्राप्ति की जा सकती है।
उस मोक्ष की प्राप्ति के क्या उपाय हैं ?
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(३) बाल जीवों के संग से दूर रहना, गुरुजन तथा वृद्धअनुभवी महापुरुषों की सेवा करना तथा एकान्त में रहकर धैर्यपूर्वक स्वाध्याय, सूत्र तथा उनके गम्भीर अर्थ का चिन्तवन करना - यही मोक्ष का मार्ग ( उपाय ) है ।
( ४ ) तथा समाधि की इच्छावाले तपस्वी साधु को परिमित एवं शुद्ध श्राहार ही महण करना चाहिये; निपुणार्थं बुद्धिवाले ( मुमुक्षु ) साथी को ढूंढना चाहिये और स्थान भी एकांत ( ध्यान धरने योग्य) ही पसन्द करना चाहिये ।