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________________ चरणविधि टिप्पणी- प्रतिमा अर्थात् अमुक व्रत नियमादिकी क्रिया ।' 1 (१२) तेरह प्रकार के क्रियास्थानों में, चौदह प्रकार के प्राणीसमूहों में तथा पन्द्रह प्रकार के परमाधार्मिक देवों में जो भिक्षु हमेशा अपना उपयोग रखता है वह इस संसार में परिभ्रमण नहीं करता । ३६५ (१३) जो भिक्षु (सूयगडांग सूत्र के प्रथमस्कंध के ) ' सोलह अध्ययनों में तथा सत्रह प्रकार के असंयमों में निरन्तर उपयोग रखता है वह इस संसार में परिभ्रमण नहीं करता । (१४) अठारह प्रकार के अब्रह्मचर्य के स्थानों में, उन्नीस प्रकार के ज्ञाता अध्ययनों में तथा वीस प्रकार के समाधिस्थ स्थानों में जो भिक्षु सदैव अपना' उपयोग लगाता है वह इस संसार में परिभ्रमण नहीं करता । • (१५) इक्कीस प्रकार के सबल दोषों में एवं बाईस प्रकार के परिषहों में जो साधु हमेशा उपयोग रखता है, वह इस संसार में परिभ्रमण नहीं करता । 1 (१६) सूयगडांग सूत्रके कुल तेईस अध्ययनों में तथा चौवीस प्रकार के अधिक रूपवाले देवोंमें जो भिक्षु सदैव उपयोग रखता है वह इस संसार में परिभ्रमण नहीं करता । (१७) जो भिक्षु पच्चीस प्रकार की भावनाओं में तथा दशाश्रुत स्कंध, बृहत्कल्प तथा व्यवहार सूत्र के सब मिलाकर छव्वीस विभागों में अपना उपयोग लगाता है वह इस संसार में परिभ्रमण नहीं करता है ।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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