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उत्तराध्ययन सूत्र
(५) जो भिक्षु देव, मनुष्य, तथा पशुओं के आकस्मिक उपसों
को समभावसे सहन करता है वह इस संसार में परिभ्र
मण नहीं करता। (६) जो भिक्षुः चार विकथा, चार कपाय, चार संज्ञा तथा दो
तरह के ध्यानों को हमेशा के लिये छोड़ देता है वह इस
संसार में परिभ्रमण नहीं करता।। टिप्पणी-दो ध्यान अर्थात् मातध्यान तथा रौद्रध्यान । (७) पाँच महाव्रत, पाँच इन्द्रियों के विषयों का त्याग, पाँच
समिति, पाँच पापक्रियाओं का त्याग-इन ४ वातों में जो साधु निरन्तर अपना उपयोग रखता है वह इस संसार में
परिभ्रमण नहीं करता। (८)छ लेश्या, छकाय तथा आहार के ६ कारणों में जो साधु
हमेशा अपना उपयोग रखता है वह संसार में परिभ्रमण
नहीं करता । (९) सात पिंड ग्रहण की प्रतिमाओं तथा सात प्रकार के भय
स्थानों में जो भिक्षु सदैव अपना उपयोग लगाये रहता है . वह इस संसार में परिभ्रमण नहीं करता। (१०) आठ प्रकार के मद, नौ प्रकार के ब्रह्मचर्य रक्षण तथा दस
प्रकार के भिक्षुधर्ममें जो भिक्षु सदेव अपना उपयोग
लगाये रखता है वह इस संसार में परिभ्रमण नहीं करता। (११) श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं तथा वारह प्रकार की भिक्षु
प्रतिमाओं में जो साधु सदैव अपना उपयोग लगाता है वह संसार में परिभ्रमण नहीं करता है।