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________________ उचराध्ययन सूत्र (२२) यदि अमुक स्त्री अथवा पुरुष अलंकार सहित होंगे अथवा अमुक वालक, युवा अथवा वृद्ध ने अमुक प्रकार के वस्त्र · पहिने होंगे(२३) अथवा अमुक रंग के वस्त्र पहिने होंगे, अथवा वे रोप सहित अथवा हर्ष सहित होने के चिन्हों सहित होंगे, ऐसे दाताओं के हाथ से ही मैं भोजन ग्रहण करूँगा-अन्य के हाथ से नहीं, इस प्रकार का संकल्प कर भिक्षाचरी में जाना उसे भावऊणोदरी तप कहते हैं।। टिप्पणी-ऐसे कठोर संकल्प वारंवार सफल नहीं होते इसलिये भिक्षा 'नहीं मिलती इससे वारंवार भूखा रहने की तपश्चर्या करनी पड़े यह संभव है। (२४) द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से, तथा भाव से उपरोक्त चारों - नियमों सहित होकर जो साधु विचरता है उसे 'पर्यवचर' । तपश्चर्या करनेवाला साधु कहते हैं। टिप्पणी-पर्यव का अर्थ है जिसमें उपरोक्त चारों बातें पाई जाय उस ___तप को 'पर्याय ऊणोदरी तप' कहते हैं । (२५) आठ प्रकार की गोचरी में तथा सात प्रकार की एपणा में भिक्षु जो २ दूसरे अभिग्रह करता है उसे भिक्षाचरी तफ . कहते हैं। टिप्पणी-अन्य अन्यों में इस तप को 'वृत्ति संक्षेप भी कहा है । वृत्ति · संक्षेप का अर्थ यह है कि जीवन संबंधी आवश्यकताओं को कम में कम कर ढालना । यह तीसरा वाह्य तप है। (२६) दध, दही, घी आदि रसा तथा अन्य रसपणे पकामा 'अथवा मिष्ठ, कडुवा, चर्परा, नमकीन, कसैला आदि रसों
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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