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________________ ३५६ उत्तराध्ययन सूत्र (१४) ऊरणोदरी तप के भी द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव तथा पर्याय की दृष्टि से संक्षेप में पांच भेद कहे हैं। (१५) जिसका जितना आहार हो उसमें से कम में कम एक कौर भी कम लेना यह द्रव्य ऊपोदरी तप कहलाता है। (१६) (१) गाम, (२) नगर, (३) राजधानी, (४) निगम (५) आकर (खानवाला प्रदेश), (६) पल्ली ( अटवी का मध्यगत प्रदेश), (७) खेट (जहां मिट्टी का परकोट हो), (८) करवट ( छोटे छोटे गांव वाला प्रदेश), (९) द्रोणमुख ( जल तथा स्थलवाला,प्रदेश), (१०) पारण (जहाँ सव दिशाओं से आदमी पाकर रहते हैं अथवा बन्दरगाह), (११) मंडप (चारों दिशाओं में अढाई अढाई कोस तक जहां गाम हों ऐसा प्रदेश), (१२), संवाहन ( पर्वत के बीच में जो गाम बसा हो)(१७-१८) (१३) आश्रमपद (जहां तपस्वियों के पाश्रम' - स्थानक हों), (१४) विहार (जहां भिक्षु अधिक संख्या में रहते हों ऐसा स्थान ), (१५) सन्निवेश (२-४ झोपड़ावाला प्रदेश), (१६) समाज (धर्मशाला), (१७) घोप (गामों का समूह), (१८) स्थल (रेत के ऊचे ऊँचे ढेरों का प्रदेश), (१९) सेना (छावनी), (२०), खंघार ( कटक उतरने का स्थल), (२१) सार्थवाही (व्यापारियों) के इकट्ठा होने या उतरने का स्थल (मंडी), (२२) संवर्त (जहां भयत्रस्त गृहस्थ आकर शरण ले ऐसा स्थल), (२३) कोट ( कोटवाला प्रदेश), (२४)
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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