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________________ तपोमार्ग . ३५५ भोजन की आकांक्षा विद्यमान है किन्तु दूसरे में भोजन और जीवन इन दोनों ही की विरक्ति है। टिप्पणी-प्रथम भेद में नियत काल की मर्यादा होने से भोजन की अपेक्षा रहती है किन्तु दूसरे में वह बात है ही नहीं। १०) जो अणसण तप कालमर्यादा के साथ किया जाता है उसके भी ६ अवान्तर भेद हैं:(११) (१) श्रेणितप, (२) प्रतर तप, (३) घन तप, (४) वर्ग तप (५) वर्गवर्ग तप, और (६) प्रकीर्णं तप । इस प्रकार भिन्न भिन्न तथा मनोवांच्छित फल देने वाले सावधिक अणसण तप के भेद जानो। टिप्पणी-णितप भादि तपश्चर्याएं जुदी २ तरह से उपवास करने से होती हैं। इन तपों का विस्तृत वर्णन भन्य सूत्रों में है। (१२) मृत्युपर्यंतके अणसणके भी कायचेष्टा की दृष्टि से दो भेद हैं: (१) सविचार (काय की क्रियासहित दशा), वथा (२) . अविचार (निष्क्रिय)। (१३) अथवा सपरिकमें (दूसरों की सेवा लेना) तथा अपरिकम ये दो भेद हैं। इसके भी दो भेद हैं-(१) निहारी, अनिहारी। इन दोनों प्रकार के मरणों में आहार का सर्वथा त्याग तो होता ही है। मणी-निहारी मरण अर्थात् जिस मुनि का मरण गाम में हुआ हो और उसके मृत शरीर को गाम बाहर ले जाना पड़े उसे; तथा किसी गुफा इत्यादि में मरण हो उसको भनिहारी मरण कहते हैं ।।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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