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सम्यक्त्व पराक्रम
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(६६) शिष्य ने पूंछा-हे पूज्य ! स्पर्शन्द्रिय के संयम से जीव को
क्या लाभ है ?
गुरु ने कहा-हे भद्र । स्पर्शेन्द्रिय के संयम से सुन्दर, किंवा असुन्दर स्पों मे यह जीव रागद्वेषरहित होता है
और इस कारण रागद्वेषजन्य कर्मों का बंध नहीं करता
तथा पूर्वसंचित कर्मों के बंधनों को भी नष्ट कर देता है । (६७) शिष्य ने पूंछा-हे पूज्य ! क्रोधविजय से जीव को क्या लाभ है ?
गुरु ने कहा - हे भद्र ! क्रोधविजय से जीव को क्षमागुण की प्राप्ति होती है और ऐसा क्षमाशील जीव क्रोधजन्य कर्मों का बंध नहीं करता और पूर्वसंचित कर्मों
का भी क्षय करता है। (६८) शिष्य ने पूंछा-हे पूज्य ! मानविजय से जीव को क्या लाभ है ?
गुरु ने कहा-हे भद्र ! मान के विजय से जीव को मृदुता नामक अपूर्व गुण की प्राप्ति होती है और मार्दव गुण संयुक्त ऐसा जीव मानजनित कर्मों का बंध नहीं करता
तथा पूर्वसंचित कर्मों का भी क्षय करता है। ४६९) शिष्य ने पूंछा-हे पूज्य ! मायाविजय से जीव को क्या लाम है ?
गुरु ने कहा-हे भद्र ! मायाचार को जीतने से जीव को आर्जव (निष्कपटता) नामक अपूर्व गुण की प्राप्ति होती है और फिर आजैवगुण समन्वित यह जीव माया