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उत्तराध्ययन सूत्र
प्राप्ति से सम्यक्त्व की शुद्धि होती है और उसके मिथ्यात्व का नाश होता है ।
(५७) शिष्य ने पूँछा - हे पूज्य ! वचन को सत्यमार्ग में स्थापित करने से जीव को क्या लाभ है ?
गुरु ने कहा - हे भद्र! वचन को सत्यमार्ग में स्थापित करने से जीव अपने बोधि सम्यक्त्व की पर्यायों को निर्मल किया करता है और सुलभ बोधि को प्राप्त होकर दुर्लभ बोधित्व को दूर करता है ।
(५८) शिष्य ने पूँछा - हे पूज्य ! काय को संयम में स्थापित करने से जीव को क्या लाभ है ?
गुरु ने कहा- हे भद्र ! काय को सत्यभाव से संयम में स्थापित करने से जीव के चारित्र की पर्यायें निर्मल होती हैं और चारित्र निर्मल जीव ही यथाख्यात चारित्र की साधना करता है । यथाख्यात चारित्र की विशुद्धि कर वह चार घातिया कर्मों (ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय) को नाश कर डालता है और वाद में वह जीव शुद्ध, बुद्ध, मुक्त होकर अनन्त शान्ति का भोग करता है और दुःखों का अन्त कर देता है ।
(५९) शिष्य ने पूंछा - हे पूज्य ! ज्ञानसंपन्नता से जीव को क्या लाभ है ?
गुरु ने कहा- हे भद्र! ज्ञानसंपन्न जीव यावन्मात्र पदार्थों का यथार्थ ( सच्चा ) भाव जान सकता है और यथार्थ भाव जाननेवाला जीव चतुर्गतिमय इस संसार -