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उत्तराध्ययन सूत्र
(४९) शिष्य ने पूँछा - हे पूज्य ! मृदुता से जीव को क्या लाभ है ?
गुरु ने कहा- हे भद्र ! मृदुता से जीव श्रभिमानरहित हो जाता है और वह कोमल मृदुता को प्राप्त कर आठ प्रकार के मदरूपी शत्रु का संहार कर सकता है । टिप्पणी:- जाति, कुछ, बल, रूप, तप, ज्ञान, लाभ तथा ऐश्वर्य ये ८ मद के स्थान
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(५०) शिष्य ने पूँछा - हे पूज्य ! भावसत्य ( शुद्ध अंतःकरण ) से जीव को क्या लाभ है ?
गुरु ने कहा- हे भद्र ! भावसत्य होने से हृदयविशुद्धि होती है और ऐसा जीवात्मा ही अर्हन्त प्रभु द्वारा निरूपित धर्म की याराधना कर सकता है। धर्म का आराधक पुरुष ही लोक परलोक दोनों को साध सकता है । (५१) शिष्य ने पूँछा - हे पूज्य ! करणसत्य से जीव को क्या
लाभ है ?
करणसत्य ( सत्य प्रवृत्ति शक्ति पैदा होती है और जैसा बोलता है वैसा ही
गुरु ने कहा- हे भद्र ! करने ) से सत्यक्रिया करने की सत्य प्रवृत्ति करनेवाला जीव करता है ।
(५०) शिष्य ने पूँछा - हे पूज्य ! योगसत्य से जीव को क्या जाभ है ?
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गुरु ने कहा – हे भद्र! सत्ययोग से योगों की शुद्धि होती है ।
टिप्पणी:- योग अर्थात् मन, वचन और काय की प्रवृत्ति ।