________________
३३८
उत्तराध्ययन सूत्र
गुरु ने कहा- हे भद्र! वृत्ति मात्र त्याग से यह जीवात्मा अनिवृत्तिकरण को प्राप्त होता है । अनिवृत्तिप्रात जीव अणगार होकर केवलज्ञानी होता है और बाद में चार अघातियां कमों (वेदनीय, श्रायु, नाम और गोत्र ) का नाश कर डालता है । बाद में सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होकर अनन्त शान्ति का उपभोग करता है ।
(४२) शिष्य ने पूँछा - हे पूज्य ! प्रतिरूपता (आदर्शता - स्थविर - कल्पी की श्रान्तर तथा बाह्य उपाधिरहित दशा ) से जीव को क्या लाभ है ?
गुरू ने कहा- हे भद्र ! प्रतिरूपता से जीवात्मा लघुताभाव को प्राप्त होता है और लघुताप्राप्त जीव अप्रमत्त रूप से प्रशस्त तथा प्रकट चिन्दों को धारण करता है और ऐसा प्रशस्त चिन्ह धारण करनेवाला निर्मल सम्यक्त्वी होकर समिति पालन करता है तथा सब जीवों का विश्वस्त जितेन्द्रिय तथा विपुल तपस्वी चनता है
1
(४३) शिष्य ने पूँछा - हे पूज्य ! सेवा से जीव को क्या लाभ है ? गुरु ने कहा- हे भद्र ! सेवा से जीवात्मा तीर्थङ्कर नाम गोत्र का बंध करता है ।
(४४) शिष्य ने पूँछा - हे पूज्य ! सर्व गुण प्राप्त करने से जीव को क्या लाभ है ?
ने कहा- हे भद्र ! ज्ञानादि सर्व गुण प्राप्त होने पर संसार में पुनरागमन नहीं होता है और पुनरागमन न
गुरु