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सम्यक्त्व पराक्रम
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अयोगी जीव निश्चय से नये कमों का बंध नहीं करता है
और पूर्वसंचित कर्मों का क्षय कर डालता है। (३८) शिष्य ने पूछा-हे पूज्य ! शरीर त्यागने से जीव को क्या लाभ है ?
गुरु ने कहा-हे भद्र । शरीर त्यागने से सिद्ध भगवान के अतिशय (उच्च) गुणभाव को प्राप्त होता है
और सिद्ध के अतिशय गुणभाव को प्राप्त होकर वह जीवात्मा लोकाग्र में जाकर परमसुख को प्राप्त होता है अर्थात
सिद्ध ( सर्व कर्मों से विमुक्त ) होता है। (३९) शिष्य ने पूछा-हे पूज्य ! सहायक के त्याग से जीव को
क्या लाभ है ?
- गुरु ने कहा-हे भद्र। सहायक का त्याग करने से 'जीवात्मा एकत्वभाव को प्राप्त होता है और एकत्वभाव प्राप्त जीव अल्पकषायी, अल्पक्लेशी और अल्पभाषी होकर
संयम, संवर और समाधि में बहुत दृढ़ होता है । (४०) शिष्य ने पूछा-हे पूज्य ! आहार त्याग की तपश्चर्या करनेवाले जीव को क्या लाभ होता है ?
गुरु ने कहा-हे भद्र! आहार त्याग की तपश्चर्या करनेवाला जीवात्मा अपने अनशन द्वारा सैंकड़ो भवों का
नाश कर देता है (अल्प संसारी होता है)। (४१) शिष्य ने पूछा-हे पूज्य ! सर्व योगावरोध क्रिया करने . . से जीव को क्या लाभ है ?
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