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उत्तराध्ययन सूत्र
अनन्तशांति को प्राप्त होता है और सब दुःखों का अन्त कर देता है ।
(२९) शिष्य ने पूंछा - हे पूज्य ! विपयजन्य सुखों से दूर रहकर संतोपी जीवन बिताने से क्या लाभ है ?
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गुरु ने कहा :- हे भद्र ! संतोपोजीव व्याकुलता का नाश कर देता है व्याकुलतारहित जीव शांति का अनुभव करता है और शांतपुरुप ही स्थितबुद्धि होता है और ऐसा स्थितबुद्धि जीव हर्ष, विपाद अथवा शोकरहित होकर चारित्रमोहनीय कमों का क्षय करता है ।
टिप्पणीः - आत्मा को जो कर्म संयम धारण नहीं करने देते उसे चारित्रमोहनीय कर्म कहते हैं ।
(३०) शिष्य ने पूंछा - हे पूज्य ! (विपयादि के ) श्रप्रतिबंध से जीव को क्या लाभ है ?
गुरु ने कहा- हे भद्र ! जो जीव विषयादि के बंधनों से प्रतिवद्ध रहता है उसे असंगता ( श्रासक्तिहीनता ) प्राप्त होती है। असंगता से उसे चित्त की एकाग्रता प्राप्त होती है और उससे वह जीव अहोरात्र किसी भी वस्तु में न बंधकर एकोन्त शान्ति को प्राप्त होता है और श्रासक्तिरहित होकर विचरता है ।
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(३१) शिष्य ने पूंछा हे पूज्य ! एकान्त ( स्त्री इत्यादि संग रहित ) स्थान, श्रासन तथा शयन से जीव को क्या लाभ है ?
गुरु ने कहा: हे भद्र! एकान्तसेवन से चारित्र का रक्षण होता है और शुद्ध चरित्रधारी जीव रस्रासकि