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उत्तराध्ययन सूत्र
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(२२) (शिष्य ने पूंछा:-) हे पूज्य ! अनुप्रेक्षा करने से जीव को क्या लाभ है ?
गुम ने कहाः-हे भद्र ! जो अनुप्रेक्षा (तत्त्व का पुनः २ चिन्तवन) करता है वह श्रायुप्य कर्म के सिवाय सात क्रमों का गाढ बंधनों से बंधी हुई कर्मप्रकृतियों को शिथिल बनाता है। यदि वे लॅबी स्थिति की हों तो वह उन्हें खपाकर थोड़ी स्थिति को बना देता है। तोत्र रस (विपाक) की हों तो उन्हें कम रस की बना डालता है। बहुप्रदशी हों तो उनको अल्पप्रदेशी बना डालता है। कदाचित आयुष्य कर्म का बंध हो और न भी हो ( तद्भव मोक्षगामी हो) ऐसे जीव को असाता वेदनीय कम का बंध नहीं होता और वह अनादि अनंत दीर्घकाल से चले आते हुए संसाररूपी अरण्य (वन)
को शीत्र ही पार होजाता है। (२३) शिष्य ने पूंछा:-हे पूज्य ! धर्मकथा कहने से जीव को क्या लाभ है ?
गुरु ने कहा-दे भद्र ! धर्मकथा कहने से निर्जरा होती है और जिनेश्वर भगवानों के प्रवचनों की प्रभावना होती है और प्रवचनों की प्रभावना से भविष्यकाल में वह जीव केवल शुभकमां का ही बंध करता है (अशुभ
फमों का पानव रुक जाता है)। (२४) शिष्य ने पूंछा:-दे पूज्य ! सूत्रासिद्धान्त की आराधना
में जीव को क्या लाभ है?