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________________ सम्यक्त्व पराक्रम ३३१ (१९) शिष्य ने पूंछा--हे पूज्य ? वांचन से जीव को क्या लाभ है ? गुरु से कहा-हे भद्र ! वांचन से कर्मों की निर्जरा होती है और सूत्रप्रेम होने से ज्ञान में वृद्धि होती है और ज्ञानप्राप्ति होने से तीर्थकर भगवानों के सत्य धर्म का अन्नलंबन मिलता है और सत्यधर्म का सहारा मिलने से कर्मों की निर्जरा कर आत्मा कर्मरहित हो जाता है। टिप्पणी-वांचन में स्ववांचन ( अपने आप पढ़ना) तथा अध्ययन (किसी दूसरे के पास जाकर पढ़ना) इन दोनों का समावेश होता है। (२०) शिष्य ने पूंछा-हे पूज्य ! शास्त्रचर्चा करने से जीव को क्या लाभ है ? गुरु ने कहा-हे भद्र ! जो जीव शास्त्रचर्चा करता - है वह महापुरुषों के सूत्रो तथा उनके रहस्य इन दोनों को समझ सकता है। सूत्रार्थ का जानकार जीव शीघ्र ही कांक्षामोहनीय कर्म का क्षय कर देता है। (यहां कांक्षा मोहनीय का अर्थ चारित्रमोहनीय है ) (२१) शिष्य ने पूंछाः-हे पूज्य ! सूत्रपुनरावर्तन करने से जीव को क्या लाभ है। गुरु ने कहा:-हे भद्र ! जो जीव सूत्रपुनरावर्तन (पढ़े हुए पाठों का पुनरावर्तन) करता है उसको अपने भले हुए पाठ फिर याद हो जाते हैं और ऐसी आत्मा को अक्षरलन्धि (अक्षरों का स्मरण) तथा पदलब्धि) ( पदों का स्मरण ) होता है।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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