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उत्तराध्ययन सूत्र
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(१६) शिष्य ने पूंछा-हे पूज्य ! प्रायश्चित्त करने से जीव को
क्या प्राप्ति होती है। । गुरु ने कहा-हे भद्र! प्रायश्चित करने वाला जीव , पापों की विशुद्धि करता है और व्रत के अतिचारों
(दोषों) से रहित होता है और शुद्ध मन से प्रायश्चित्त ग्रहण कर कल्याण के मार्ग और उसके फल की विशुद्धि करता है और वह क्रम से चारित्र तथा उसके फल (मोक्ष)
को प्राप्त कर सकता है। (१७) शिष्य ने पूंछा हे पूज्य ! क्षमा धारण करने से जीव को
क्या लाभ है ?
गुरु ने कहाः-हे भद्र! क्षमा से चित्त श्राह्लादित होता है और ऐसा आल्हादित जीव; उगल के यावन्मान जीवों (प्राणी, भूत, जीव तथा सत्व इन चारों) के प्रति मैत्रीभाव पैदा कर सकता है और ऐसा विश्वामित्र जीव: अपने भाव को विशुद्ध वनाता है और भावविशुद्धि
वाला जीव अन्त में निर्भय हो जाता है। . पिपगी-दूसरों के दोषों तथा भूलों पर निगाह न अलने से चित्त मस रहता है और इस सतत चित्तप्रसन्नता से विशुद प्रेम विश्व
होता है। न वह किसी को भय देता है और न उसे ही किसी से भयभीत होना पड़ता है। (१८) (शिष्य ने पूंछा) हे पूज्य ! स्वाध्याय करने से जीव को क्या लाभ है ?
ने कहा- ह भद्र! स्वाध्याय करने से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है ।