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सम्यक्त्व पराक्रम
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है और जैसे भारवाहक ( कुली ) बोझ उतरने से शान्तिपूर्वक विचरता है वैसे ही ऐसा जीव भी चिंता
रहित होकर प्रशस्त ध्यान में सुखपूर्वक विचरता है। (१३) शिष्य ने पूंछा-हे पूज्य ! प्रत्याख्यान करने से जीव को क्या फल मिलता है ?
गुरु ने कहा, हे भद्र ! प्रत्याख्यान करनेवाला जीव आते हुए नये कर्मों को रोक देता है कर्मों के रोध होने से इच्छाओं का रोध होता है । इच्छारोध होनेसे सर्व पदार्थों में वह तृष्णा रहित होजाता है और तृष्णारहित जीव परम
शान्ति मे विचरता है। (१४) शिष्य ने पूंछा-हे पूज्य ! स्तवस्तुतिमंगल से जीव को किसकी प्राप्ति होती है ?
गुरु ने कहा- हे भद्र ! स्तवस्तुतिमंगल से जीव ज्ञान, दर्शन स्था चारित्र रूपी बोधिलाभ को प्राप्त होता है और ऐसाबोधिलब्ध जीव देहान्त में मोक्षगामी
होता है अथवा उच्च देवगति (१२ देवलोक, नव प्रवेयक ' तथा ५ अनुत्तर विमान) की आराधना ( प्राप्ति )
करता है। (१५) शिष्य ने पूंछा-हे पूज्य ! - स्वाध्यायादि काल के प्रति-- लेखन से जीव को क्या लाभ है ?
गरु ने कहा-हे भद्र ! ऐसे प्रतिलेखन से जीवात्मा ज्ञानावरणीय कर्म को नष्ट कर डालता है।