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________________ ३२८ उत्तराध्ययन सूत्र n , A - ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ . टिप्पणी-~मनुष्य जैसा ध्यान किया करता है वैसा ही उसका आन्तरिक - चातावरण बन जाता है और अन्त में वह वैसा ही हो जाता है। (१०) शिप्य ने पूंछा-हे पूज्य ! वंदन करने से जीत्र को क्या फल मिलता है ? । गुरु ने कहा-हे भद्र! वंदन करने से जीव ने यदि नीचगोत्र का बंध भी किया हो तो वह उसको छेद कर ऊँच गोत्र का बंध करता है (अर्थात् नीच वातावरण में पैदा न होकर उच्च वातावरण में पैदा होता है) और सौभाग्य और श्राज्ञा का सफल सामथ्य को प्राप्त करता है ( बहुत से जीवों अथवा समाज का नेता बनता है) और दाक्षिण्यभाव (विश्ववल्लभता) को प्राप्त होता है। (११) शिष्य ने पूंछा-हे पूज्य ! प्रतिक्रमण करने से जीव को क्या फल मिलता है ? गुरु ने कहा-हे भद्र ! प्रतिक्रमण के द्वारा जीवात्मा ग्रहण किये हुए बवों के दोषों को दूर कर सकता है । ऐसा शुद्ध व्रतधारी जीव हिंसादि के श्रानब से निवृत्त होकर पाठ प्रवचन माताओं में सावधान होता है और विशुद्ध चारित्र को प्राप्त होकर संयमयोग से अलग न हो कर आजन्म संयम में समाधिपूर्वक विचरता है। (१२) शिष्य ने पूंछा-हे पूज्य ! कायोत्सर्ग करने से जीवको क्या फल मिलता है ? गुरु ने कहा है भद्र ! कायोत्सर्ग से भूत तथा वर्तमान काल के दोषों का प्रायश्चित कर जीव शुद्ध बनता
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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