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सम्यक्त्व पराक्रम
त्ताम की भट्ठी में समस्त दोषों को डाल कर वैराग्य प्राप्त करता है। ऐसा विरक्त जीव अपूर्वकरण की श्रेणी (क्षपकश्रेणी) प्राप्त करता है और क्षपकश्रेणी प्राप्त करनेवाला
जीव शीघ्र ही मोहनीय कर्म का नाश करता है। टिप्पणी-कर्मों का सविस्तार वर्णन जानने के लिये तेतीसवां अध्या
यन पढ़ो। (७) शिष्य ने पूंछा-हे पूज्य ! गर्दा (आत्मनिंदा) करने से जीव को क्या फल मिलता है ?
गुरु ने कहा-हे भद्र ! गर्दा करने से आत्मनम्रता की प्राप्ति होती है और ऐसा आत्मनम्र जीवः अप्रशस्त कर्मबंधन के कारणभूत अशुभ योग से निवृत्त होकर शुभयोग को प्राप्त होता है। ऐसा प्रशस्त योगी पुरुष अणगार धर्म धारण करता है और अणगारी होकर वह अन
न्त प्रात्मघातक कर्मपर्यायों का समूल नाश करता है। (८) शिष्य ने पूंछा-हे पूज्य ! सामायिक करने से जीव को क्या फल मिलता है ? |
गुरु ने कहा-हे भद्र ! सामायिक करने से विराम (आत्मसंतोष ) की प्राप्ति होती है । (९) शिष्य ने पूंछा-हे पूज्य ! चौवीस तीर्थंकरों की स्तुति
करने से जीव को क्या फल मिलता है ? . - - गुरु ने कहा-हे 'भद्र ! चौवीस तीर्थंकरों की स्तुति
करने से आत्मदर्शन की विशुद्धि होती, जाती है। ,