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भगवान बोले:
उत्तराध्ययन सूत्र
पूज्य ! सकता है
( १ ) शिध्य पूंछता है कि - हे लीवात्मा क्या प्राप्त कर प्राप्त होता है ) ? गुरु बोले: - हे भद्र ! संवेग से अनुत्तर धर्मश्रद्धा जागृत होती है और उस अपूर्व आत्मश्रद्धा से शीघ्र ही वैराग्य उत्पन्न होता है और वह वैराग्य अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया और लोभ का नाश करता है । ( इस समय कपायों का उपशम, क्षय अथवा क्षयोपशमइन तीनों में से योग्यतानुसार कोई एक अवस्था होती है ) । ऐसा जीवात्मा नवीन कमों को नहीं बांधता और कर्मबंधन का निमित्त कारण मिध्यात्व की शुद्धि कर समयऋत्व का श्राराधक होता है । सम्यक्त्व की उच्च प्रकार की विशुद्धि होने ( क्षायिक सम्यक्त्व की उच्च स्थिति ) से कोई कोई जीव तद्भवमोक्षगामी होते हैं और जो उसी जन्म में मोक्ष में नहीं जाते वे आत्मविशुद्धि के कारण तीसरे जन्म में तो अवश्य मोक्षगामी होते हैं । टिप्पणी- क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव संसार में ३ भव से अधिक भव नहीं करते ।
संवेग (मुमुक्षुता ) से
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? ( कौन से गुण को
(२) हे पूज्य ! जीवात्मा को निर्वेद ( निरासक्ति ) से कौन कौन गुण प्राप्त होते हैं।
गुरु ने कहा- हे भद्र ! निर्वेद से यह जीवात्मा देव, मनुष्य तथा पशु संबंधी समस्त प्रकार के कामभोगों से शीघ्र ही श्रासक्ति रहित हो जाता है और