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________________ सम्यक्त्व पराकम '३२३ त्याग), (३५) याहार प्रत्याख्यान, (३६) कषाय प्रत्याख्यान (३७) योग प्रत्याख्यान (पाप किंवा मन, वचन, तथा काय की "दुष्प्रवृत्ति रोकना), (३८) शरीर का त्याग, (३६) सहायक का त्याग, (४०) भक्तप्रत्याख्यान, (अनशन-अपना अन्तकाल पाया जानकर श्राहार का सर्वथा त्याग करना), (४१) स्वभाव प्रत्याख्यान (दुष्ट प्रकृतियों से निवृत्त होना), (४२) प्रतिरूपता (मन वचन तथा काय की एकता), (१३) वैयावृत्य (गुणीजन की सेवा ), (४४) सर्वगुणसम्पन्नता (आत्मिक सब गुणों की प्राप्ति), (४५) वीतरागता (रागद्वेष से विरक्ति), (४६) क्षमा, ४७) मुक्ति (निर्लोभता), (४८)सरलता (मायाचार का त्याग) {४६) मृदुता ( निरभिमानता), (५०) भावसत्य (शुद्ध अन्तः करण), (५१) करणसत्य (सच्ची प्रवृत्ति), (५२) योगसत्य (मन, वचन और काय का सत्यरूप व्यापार ), (५३) मनो गुप्ति (मन का संयम), (५४) वचन गुप्ति (वचन का संयम), १६५५)काय गुप्ति (काय का संयम), (५६) मनः समाधारणा (मन को सत्य में एकाग्र करना) (५७) वाक् समाधारणा (योग्य मार्ग में वचन का उपयोग), (५८) काय समाधारणा (केवल सत्याचरण में शरीर की प्रवृत्ति करना ), (५६) ज्ञानसम्पन्नता ( ज्ञान की प्राप्ति), (६०) दर्शन सम्पन्नता (सम्यक्त्व की प्राप्ति (६१) चारित्र सम्पन्नता (शुद्ध चारित्र की प्राप्ति), (६२) श्रोत्रेन्द्रिय निग्रह ( कान का संयम), (६३) अांख का संयम, ४) घ्राणेन्द्रिय (नाक का) संयम, (६५) जीभ का संयम, ६६) स्पर्शेन्द्रिय का संयम, (६७) क्रोध विजय, (६८)मान विजय, (६१) माया विजय, (७०) लोभ विजय, (७१) रागद्वेष तथा मिथ्यादर्शन (खोटे श्रद्धान) का विजय, (७२) शैलेशी (मन, वचन के भोगों को रोकना, पर्वत जैसी अडोल-अकंप स्थिति का प्राप्त होना), तथा (७३) अकर्मता (कर्म रहित अवस्था)।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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