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________________ । सम्यक्त्व पराक्रम ३२१ यावन्मात्र जीव मोक्ष के साधक हैं। कौन ऐसा है जो : दुःखसे छूटना नहीं चाहता? कौन ऐसा है जिसे सुख प्रिय नहीं है ? यह अवस्था केवल मोक्ष में ही प्राप्त होती है। इसलिये भले ही जगत में असंख्य मत-मतान्तर हों, भले ही सब की मान्यताएं जुदी हों फिर भी दुःख का अन्त सभी चाहते है और वे प्रकारान्तर से मोक्ष चाहते हैं- ऐसा कहने में कोई प्रत्युक्ति नहीं हैं ।' मोक्षप्राप्ति ही सब का ध्येय है, उसे ध्येय की प्राप्ति की भूमिका यह संसार है; उसमें भी मनुष्यभव की प्राप्ति उसकी साधना का विशेष उच्च स्थान है और यदि इस जन्म में प्राप्त साधनों का सुमार्ग में प्रयोग किया जाय तो साधक की वह अनन्तकालीन साधना सफल हो जाती हैवह अतृप्त पिपासा अमृत पान से तृप्त हो जाती है और मुक्तिलक्ष्मी स्वयमेव इसकी शोध करती हुई चली आती है। जहां सवल पराक्रम होता है वहां कौन सी ऋद्धि सिद्धि अलभ्य रहती है ? --- जैसे जीव भिन्न २ होते हैं वैसे ही उनके साधनों एवं प्रकृति में भी भिन्नता होती है इसलिये सम्यक्त्व पराक्रम के भिन्न २ साधन भिन्न २ रूप से यहां ७३ भेदों में कहे हैं जिनमें से कुछ तो सामान्य, कुछ विशेष और कुछ विशेषतर कठिन हैं । इनमें से अपने २ इष्ट साधनों को छांट कर प्रत्येक साधक को पुरुषार्थ में प्रयत्न तथा विचार करना अति आवश्यक है। सुधर्मस्वामी ने जम्बूस्वामी से कहाः : हे आयुष्मन् ! उन भगवान महावीर ने इस प्रकार कहा था यह मैंने, सुना है । यहां पर वस्तुतः श्रमण भगवान काश्यप महावीर प्रभु 'ने सम्यक्त्व पराक्रम नामक अध्ययन का वर्णन किया है। जिनको सुन्दर रीति से सुन कर उनपर विश्वास तथा श्रद्धा लाकर, (श्रडग विश्वास लाकर ) उनपर रुचि जमाकर | T २१ 3
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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