________________
सम्यक्त्व पराक्रम
- *सम्यग्दर्शन की महिमा
२४
राक्रम, शक्ति अथवा सामथ्य तो जीव मात्र में होता है
किन्तु संसार में उसका उपयोग जुदी जुदी रीति से सुदे २ रूप में होता हुआ देखा जाताहै और उसी से जीवों की भूमिकाएं (श्रेणी) मालूम होती है। जो कोई प्राप्त शस्त्र का उपयोग अपनी रक्षा में न कर अपने ऊपर प्रहार करने में ही करता है वह मूर्ख है-महामूर्ख है, उसे बुद्धिमान कौन कहेगा ? उसी तरह इस भवोदधि को पार कर जाने के साधन पास रखते हुए भी जो इसीमें डूब जाता है उसे वान जीव न कहे तो क्या कहे ?
ज्यों २ ऐसा वाल-भाव मिटता जाता है त्यो २ साथ ही साथ उसकी दृष्टि भी बदलती जाती है। इस दृष्टि को जैन न में एक विशिष्ट नाम दिया है और उसको समकित दृष्टि
हैं। यह दृष्टि प्राप्त कर जो कुछ भी पुरुषार्थ किया जाता की सच्चा पुरुषार्थ है, वही सच्चा पराक्रम है।