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मोक्षमार्गगति
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श्रद्धा करता है, चारित्र से आते हुए कर्मों को रोकता है
और तप से पहिले के कर्मों का क्षय कर शुद्ध होता है। (३६) इस प्रकार संयम तथा तप द्वारा पूर्व कर्मों को स्वपाकर
सर्व दुःख से रहित होकर महर्षिजन शीघ्र ही मोक्ष गति प्राप्त करते हैं।
ऐसा मैं कहता हूँइस तरह 'मोक्षमार्गगति' नामक अट्ठाईसवाँ अध्ययन समाप्त हुआ।
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