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उत्तराध्ययन सूत्र
कोशिश करना ), स्थिरीकरण ( धर्म से शिथिल होते हु को पुनः धर्म मार्ग पर दृढ़ करना ), वात्सल्य ( स्वधर्म का हित करना और साधर्मियों के प्रति प्रेमभाव रखना), और प्रभावना ( सत्य धर्मं की उन्नति तथा प्रचार करना ), ये आठ गुण सम्यक्त्व के अंग हैं।
(३२) प्रथम सामायिक चारित्र, दूसरा छेदोपस्थापनीय, तीसरा परिहार विशुद्ध चारित्र, तथा चौथा सूक्ष्म संपराय चारित्र । ( ३३ ) तथा पांचवां कपाय रहित यथाख्यात चारित्र ( यह ग्यारहवें या बारहवें गुणस्थानकवर्ती छद्मस्थ को तथा केवली को ही होता है । इस प्रकार कर्म को नाश करने वाले चारित्र के ५ भेद कहे हैं ।
टिप्पणी- पंच महाव्रत रूप प्राथमिक भूमिका के चारित्र को सामायिक चारित्र कहते हैं । बाद में सामायिक चारित्र काल को छेड़ (सीमोल्लंघन करके जो पटा चारित्र धारण किया जाता है । उसे छेदोपस्थापना चारित्र कहते हैं । उच्च प्रकार के ज्ञान तथा तपश्चर्या पूर्वक नौ साधुओं के साथ डेढ़ वर्ष तक चारित्र पालना इसको परिहार विशुद्धि चारित्र कहते हैं और सूक्ष्म संग्रराय केवल सूक्ष्म कपाय वाले चारित्र को कहते है |
(३४) आन्तरिक तथा बाह्य ये दो भेद तप के हैं । वाह्य तथा आन्तरिक इन दोनों तपों के ६-६ भेद और हैं ।
टिप्पणी- तपश्चर्या का विशेष वर्णन जानने के लिये तीसवां अध्ययन पदो ।
(३५) जीवात्मा ज्ञान से पदार्थों को जानता है, दर्शन से उन पर