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________________ मोक्षमार्गगति ३१७ अथवा असत्य दर्शन या वाद में विश्वास करते हैं ऐसे पुरुषों से दूर रहना । इन तीन गुणों से सम्यक्त्व की श्रद्धा प्रकट होती है (अर्थात इन गुणों को निभाने से सम्यक्त्व श्रद्धापूर्वक टिका रहता है)। (२९) सम्यक्त्व बिना सम्यक चारित्र हो ही नहीं सकता और जहां सम्यक्त्व होता है वहां चारित्र हो और न भी हो यदि सम्यक्त्व और चारित्र की उत्पत्ति एक ही साथ हो तो उसमें सम्यक्त्व की उत्पत्ति पहिली समझनी चाहिये । टिप्पणी-सम्यक्त्व यह चारित्र की पूर्ववर्ती स्थिति है। यथार्थ जाने बिना भाचरण करना केवल निरर्थक है। (३०) दर्शन बिना ( सम्यक्त्व रहित ) ज्ञान नहीं होता। ज्ञान के बिना चारिन के गुण नहीं होते और चारित्र के गुणों के बिना ( कर्म से ) मुक्ति भी नहीं मिलती और कर्म से छटकारा पाये बिना निर्वाणगति (सिद्धपद ) को भी प्राप्ति नहीं होती। (३१) निःशंकित (जिनेश्वर भगवान के बचनों में शंका न करना), निःकांक्षित (असत्य मतो या सांसारिक सुखो की इच्छा न करना ), निर्विचिकित्स्य (धर्म फल में संशय रहित होना ), अमूढ़ दृष्टि ( बहुत से मतमतांतरो को देखकर दिङ्मूढ़ न वने किन्तु अपनी श्रद्धा को अड़ग बनाये रक्खे,) उपहा, (गुणी पुरुषों को देखकर उनके गुण की प्रशंसा करना और वैसे ही गुणी होने की
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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