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उत्तराध्ययन सूत्र
टिप्पणी- प्रमाण के एक अंश को नय कहते हैं । नय अर्थात् विचारों का वर्गीकरण । उसके सात भेद हैं (१) नैगम, (२) संग्रह, (३) व्यवहार, (2) ऋजु सूत्र, (५) शब्द, (६) सममिरूद, (७) एवं भूत | प्रमाण के मुख्य दो एवं विस्तृत ४ भेद है : (१) प्रत्यक्ष, - (२) अनुमान (३) उपमान, (४) तथा आगम । यावन्मात्र पदार्थो के ज्ञान में नय तथा प्रमाण की आवश्यकता रहती है ।
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(२५) सत्यदर्शन तथा ज्ञान पूर्वक, चारित्र, तप, विनय, पांच समिति और तीन गुप्तिओं आदि शुद्ध क्रियाएं करते हुए जो सम्यक्त्व प्राप्त करता है उसे 'क्रिया रुचि सम्यक्त्वी ' कहते हैं ।
(२६) ऐसा जीव जो असत् मत, वाद अथवा दर्शन में फंसा नहीं है अथवा सत्य सिवाय अन्य किसी भी वाद को नहीं मानता है फिर भी वीतराग के प्रवचन में अति निपुण नहीं है । (अर्थात् वीतराग मार्ग की श्रद्धा यद्यपि शुद्ध है किन्तु विशेष पढ़ा लिखा नहीं है) उसे 'संक्षेप रुचि सम्यक्वी' कहते हैं I
(२७) जो जीव भगवान् जिनेश्वर द्वारा प्ररूपित अस्तिकाय ( द्रव्य ), श्रुत ( शास्त्र ) धर्म तथा चारित्र का याथा तथ्य श्रद्धान करता है 'उसे धर्म रुचि सम्यक्त्त्री ' कहते हैं ।
(२८) ( १ ) परमार्थ ( तत्त्व ) का गुण-कीर्तन करना, ( २ ) जिन महापुरुषों ने उस परमार्थ की सिद्धि की है उनकी सेवा करना, तथा ( ३ ) जो मार्ग से पतित होगये हैं,