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मोक्षमार्गगति
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(८) धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय तथा आकाशास्तिकाय ये तीनों १-१ द्रव्य हैं तथा काल, पुद्गल तथा जीव ये तीनों द्रव्य संख्या में अनन्त हैं ।
टिप्पणी- समय गणना की अपेक्षा से यहां काल की अनन्तता का विधान किया है ।
( ९ ) चलने (गति) में सहायता करना यह धर्मास्तिकाय का लक्षण है । और ठहरने में मदद करना यह धर्मास्तिकाय का लक्षण है । जिसमें सब द्रव्य रहते हैं उसे प्रकाश द्रव्य कहते हैं और सबको स्थान देना यह उसका लक्षण है ।
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(१०) पदार्थ की क्रियाओं के परिवर्तन पर से समय की जो गणना होती है वह काल का लक्षण है। उपयोग (ज्ञानादि व्यापार ) जीव का लक्षण है और वह ज्ञान, दर्शन, सुखदुःख आदि द्वारा व्यक्त होता है ।
(११) ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य तथा उपयोग ये जीव के विशिष्ट लक्षण हैं
(१२) शब्द, अंधकार, प्रकाश, कान्ति, छाया, ताप, वर्णं ( रंग ) गंध, रस, तथा स्पर्श ये सब पुद्गलों के लक्षण हैं ।
टिप्पणी - 'पुद्गल' यह जैन दर्शन में जड़ पदार्थों के अर्थ में प्रयुक्त पारिभाषिक शब्द है ।
(१३) इकट्ठा होना, विखर जाना, संख्या, आकार ( वर्णादि का ) संयोग तथा वियोग- ये सभी क्रियाएं पर्यायों की बोधक हैं, इसलिये यही इनका (पुद्गलो का) लक्षण समझना चाहिये