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उत्तराध्ययन सूत्र
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नाम क्रम से (१) मतिज्ञान, (२) श्रुतज्ञान, (३) अवधिज्ञान
(४) मनः पर्ययनान, और (५) केवलज्ञान, है। टिप्पणी-इन सब ज्ञानों का सविस्तर वर्णन नन्दी आदि आगमों
में है। (५) ज्ञानी पुरुपों ने द्रव्य, गुण तथा उनकी समस्त पर्याय
जानने के लिये उक्त पांच प्रकार का ज्ञान बताया है। टिप्पणी--पर्याय अर्थात् एक ही पदार्थ की बदलती हुई भवस्थाएं। वे
समस्त पदार्थों एवं गुणों में होती रहती हैं । (६) गुण जिसके आश्रय रहते हैं उसे द्रव्य कहते हैं और
एक द्रव्य में वर्ण, रस, गंध, स्पर्श तथा ज्ञानादि जो धर्म रहते हैं उन्हें उस द्रव्य के गुण कहते हैं। द्रव्य तथा गुण इन दोनों के आश्रय जो रहती हैं उन्हें पर्याय
कहते हैं। टिप्पणी-जैसे आत्मा एक द्रव्य है, ज्ञानादि उसके गुण है और कर्म
वशात् वह भिन्न भिन्न रूप धारण करता है तो उन्हें उसकी
पर्याय कहेंगे। (७) केवली जिनेश्वर भगवानों ने इस लोक को धर्मास्तिकाय,
अधर्मास्तिकाय, अाकाशास्तिकाय, काल, पुद्गलास्तिकाय
तथा जीवास्तिकाय इन पड़ द्रव्यात्मक बताया है। टिप्पणी-"भस्तिकाय" शब्द जैन दर्शन का समूहवाची पारिभाषिक
पाद है। अस्तिकाय शब्द की व्युत्पत्ति-अस्ति (है) काय (यहु प्रदेश ) जिनके ऐसे पदार्थ अर्थात् काल द्रव्य को छोड़ कर उपरोक पांचों पदार्थ ।