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मोक्षमार्गगति
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इस उत्तम स्थिति को प्राप्त करने में शास्त्रश्रवण, श्रात्मचिन्तन, सत्संग तथा सद्वांचन आदि लब उपकारक साधन हैं। इन निमित्तों के द्वारा सत्य को जानकर, विचार कर तथा अनुभव करके आगे बढ़ना यही प्रत्येक मुमुक्षु आत्मा का कर्तव्य होना चाहिये।
भगवान बोले(१) जिनेश्वर भगवानों ने यथार्थ मोक्ष का मार्ग जैसा प्ररूपित
किया सो कहता हूँ, उसे तुम ध्यानपूर्वक सुनो। वह मार्ग चार कारणों से संयुक्त है और वह ज्ञान, दर्शन, चारित्र तथा
तप लक्षणात्मक है। टिप्पणी-यहाँ 'ज्ञानदर्शन लक्षण' विशेषण प्रयुक्त करने का कारण यह
है कि मोक्ष मार्ग में इन दोनों गुणों की सबसे अधिक प्रधा.
नता है। (२) (१) ज्ञान (पदार्थ की यथार्थ समझ), (२) दर्शन ( तत्त्वों.
पदार्थों की यथार्थ श्रद्धा), (३) चारित्र (व्रतादि.का आचरण ), तथा (४) तप-इन चार प्रकारों से युक्त मोक्ष का मार्ग है-ऐसा केवलज्ञानी जिनेश्वर भगवान ने
फर्माया है। टिप्पणी-चारित्र धारण करने से नवीन कर्मों का बन्धन नहीं होता,
इतना ही नहीं किन्तु पूर्व संचित कर्मों का क्षय भी होता है। (३) झान, दर्शन, चारित्र तथा तप से संयुक्त इस मार्ग को
प्राप्त हुए जीव सद्गति में जाते हैं। (४) इन चार में से प्रथम-अर्थात् ज्ञान के ५ भेद हैं जिनके