________________
मोदमार्गगति
मोक्षमार्ग पर गमन
२८
गावन्मात्र जीवों का लक्ष्य एकमात्र मुक्ति, निर्वाण या
। मोक्ष प्राप्ति ही है। दुःखों अथवा कपायों से सर्वथा छुट जाने को मुक्ति कहते हैं। कर्मवंधन से छूट जानाही मुक्ति है, शान्ति स्थानकी प्राप्ति होना ही निर्वाण है। इस स्थिति में ही सब सुख समाये हैं।
जैनधर्म इन समस्त सांसारिक पदार्थों को दो भागों में विमक्त करता है: (१)जह (अजीव), तथा (२) चेतन (जीव)
और इन दोनों तत्वों के सहायक तथा आधारभूत तत्त्व, जैस कि धर्म, अधमे, ग्राकाश तथा काल इन सवको मिलाकर ६ तत्वों में इस समस्त लोक का समावेश होजाता है।
इससे सिद्ध हुआ कि जीवात्मा की पहिचान-अर्थात जीवात्मा के सच्चे स्वरूप की प्रतीति-दोना यही सबसे अधिक पावश्यक है। ऐसी प्रतीति का होना ही सम्यग्दर्शन है।
प्रतीतिके होने के बाद प्रात्माके अनुपम शाम की जो चिन॥ चमक उठती है उसीको सम्यग्ज्ञान-सच्चा ज्ञान-कहते ह।
और इन दोनों ना जड (जीव, पदार्थों को दो भाग