SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ति ये बातें इस आवृत्ति की उपयोगिता में एवं मौलिकता में । वृद्धि करती हैं इसकी भाषा भी इतनी सरल दीखती है कि सभी कोई इसे बड़ी आसानी से समझ सकते हैं। इस प्रथ में ३६ अध्ययन हैं जो पद्य में हैं और उसमें यमनियमों का मुख्यता से निरूपण किया गया है। शिक्षा के रूप में सूत्रात्मक शिक्षा-वाक्य, साधुओं में तितिक्षाभाव की तरफ प्रेरित करनेवाले प्रेरणा शील भावपूर्ण कथन तथा मोक्षप्राप्ति में जन्म, धर्म-शिक्षा, श्रद्धा तथा संयम रूपी लाभचतुष्टय की उपयोगिता, सच्चे और झूठे साधु का अन्तर, भादि २ विषय विशदता के साथ निरूपित किये गये हैं। इसके सिवाय विषय को स्पष्ट एवं सरल करने के लिये जगह २ छोटे २ सुंदर उदाहरण भी दिये गये हैं। चोर का उदाहरण, रथ हांकनेवाले (गाडीवान) का उदाहरण, (भध्य० ६-श्लोक ३), तीन व्यापारियों का दृष्टांत (अध्य० ७-श्लोक १४-१६) भादि छोटे २ दृष्टांत कुंदन में जड़े हुए हीरे की तरह जगमगा रहे हैं। नमिनाथ स्वामी की कथा यहां पहिली ही वार कही गई है । इनके सिवाय, संवादों की बहुसंख्या इस ग्रंथ की 'एक खास विशेषता है। नमिनाथ का संवाद हमें बुद्ध-ग्रंथ सूत्र निपात की 'प्रत्येक बुद्ध' की कथा की याद दिलाता है। हरिकेश तथा ब्राह्मण का संवाद, धार्मिक क्रिया एवं धार्मिक वृति के बलाबल की तरफ इशारा करता है। पुरोहित और उसके पुत्रों का संवाद साधु-जीवन की अपेक्षा गृहस्थ जीवन कितने अशों में न्यून है इस बात का प्रतिपादन करता है। यह संवाद महाभारत तथा बौद्ध जातक में भी थोड़े से फेरफार के साथ दिखाई देता है, इससे सिद्ध होता है कि उत्तराध्ययन सूत्र के कुछ पुराने मागों में से यह भी एक है। इस ग्रंथ का भाठवां अध्ययन कापिलीय (संस्कृत कामिलीयन अर्थात् कपिल 8 सम्बन्धी) है और शांतिसूरि की टीका में कश्यथल कपिल की भी कथा दीगई है जो 4 * सांख्य दर्शनकार कपिल के साथ इस कपिल का कोई सम्बन्ध नहीं हैं।। .
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy