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________________ उत्तराध्ययन सूत्र का यह नाम क्यों पढ़ा 'इस विषय में भी थोड़ा मतभेद है। Leumann (ल्युमन) इसको "Later Readings" भयवा पीछे से ग्च हुए ग्रन्थ मानते हैं और अपने मत की पुष्टि में दलील देते हैं कि ये ग्रन्थ अंग ग्रन्थों की अपेक्षा पीछे से रचे गये होने से इसको 'उत्तर'-अर्थात् बाद का ग्रंथ कहा है। परन्तु उत्तराध्ययन के ऊपर जो टीका-ग्रन्थ लिखे गये हैं उनसे हमें यह बात मालूम होती है कि महावीर स्वामी ने अपने अन्तिम चौमासे में ३६ विना पूंछे हुए प्रश्नों के उत्तर' अर्थात् 'जवाब' दिये थे और वे ही इस ग्रंथ रूप में संग्रहित है । यह दलील सत्य मानने के हमारे सामने सवल प्रमाण मौजूद हैं और 'उत्तर' शब्द का अर्थ उसमें और भी पूर्ति करता है, इसलिये इस मत को अधिक प्रमाणिक मानने में काई भी आपत्ति नहीं है। उत्तराध्ययन सूत्र की निम्नलिखित प्रावृत्तियां सुप्रसिद्ध हैं १. Charpentier की भावृत्ति, उपोद्घात, टीका, टिप्पणी सहित (१९२२ ) ( यह आवृत्ति उत्तम में उत्तम मानी जाकी है)। ___Achievesd Eludes Orientales माला का १८ वाँ पृष्ठ २. जैन पुस्तकोद्धार माला का पुप्प नं० ३३, ३६, ४१ ३. उत्तराध्ययन सूत्र,-विजय-धर्मसूरिजी के शिष्य मुनि श्री जयन्त विजयजी (आगरा, १९२३-२७, ३ भागों में)। उक्त ग्रन्थ में खरतरगच्छीय उपाध्याय कमल संयम की टीका भी दी है। १. अंग्रेजी भापान्तर-Jacobi,Sacred Books of the East माला का पुष्प नं० ४५ वा५, इनके सिवाय भावनगर, लींबढ़ी आदि स्थानों में प्रसिद्ध हुई भावृत्तियां । इन सब की अपेक्षा यह गुजराती अनुवाद सबसे उत्कृष्ट , है । टिप्पणी, प्रायन, टपसंहार, एवं वाक्यार्थ प्रधान भाषांतर
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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